कोटि कोटि कंठ में हुआ मुखर
कोटि कोटि कंठ में हुआ मुखर एक स्वर
देश में सौहाद्र को आये न आंच तिल भरहर व्यक्ति देश में बने निर्भीक सदाचारीसेनायें विजय पायें अरिदल समस्त धवस्त करहोवें किसान कर्मठ फसलें नयी उगायेंहों नीतियाँ सुनीतियाँ संवेदना निहित करनारी स्वदेश की हों शिक्षित सजग सुशीलावर्चस्व दें जो राष्ट को आधार स्वयं बनकरउठो तरुण कदम भरो, काम बहुत शेष हैअवसर क्यों गंवाओ "श्री" व्यर्थं समय नष्ट करश्रीप्रकाश शुक्ल
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