Monday 5 February 2018

हाथों की  रेखा में 

हाथों की  रेखा में पढ़कर 
पंडित जी बोले दुःख भरकर 
अरे घोर अन्याय हुआ है 
काल सर्प ने तुम्हें छुआ है 

निसंतान ही जीवन बीतेगा 
जब तक न पाप का घट रीतेगा 
गौ दान तुम्हें करना  होगा 
कर्मों का फल भरना होगा 

मैंने कहा अरे पंडित जी 
मेरी तो तीन बेटियाँ हैं जी 
पंडित जी जरा तमक कर बोले बेटी संतान नहीं होती है 
धन धान्य भरे, मंगलमय घर में घोर अमंगल बोती है 

सुनकर बेढब बात मेरा सर चकराया 
प्रज्ञा शून्य हई और बेहद गुस्सा आया
मैंने कहा,धन्य प्रभो काशी से पढ़कर आये हो 
भारत विश्व गुरु होगा संकल्प साथ में लाये हो 

ये ही अध्यात्म ज्ञान क्या हर कोने में फैलाना है 
अब तो राज्य आपका है क्या ये ही अलख जगाना है 
सुना आपके प्रवचनों में गहरी भरी शिष्टता है 
नर नारी के आलिङ्गन में हर दम दिखती कामुकता है i 

नर नारी एकांत ढूंढ कुछ भी यदि बातें करते हैं 
तो वैदिक भद्रता नष्ट कर धड़ा पाप का भरते हैं 
सुनो प्रहरियो ये विचार सब गर्हित दिमाग की उपज रहे 
विकृति समाज में फैलाते है चाहे कोई कुछ क्यों न कहे 

अरे विधाता के प्रतिनिधियो कुछ तो  शरम धरो 
अब कृत्रिम मस्तिष्क बन रहे जो है सो ठीक करो 
अब घिसे पिटे दकियानूसी ख्यालात न चलने पाएंगे 
कोईऔर जीविका ढूंढो इससे परिवार न पलने पाएंगे 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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