Monday 5 February 2018

जरा झलक मिल जा्ये 

जरा झलक मिल जाये यदि  मुस्कान की
जिसमें कुसुमित दिखे हमें आशा हर इंसान की
तब  समझेंगे मेरे घर में सूरज निकल रहा है
अभी तलक तो हर आश्वासन विफल रहा है 

बिना काम के युवा आजकल भटक रहा है
मंहगाई में बिंधा चक्र जीवन का अटक रहा है 
हर गरीब याचक है धनवान और धनवान हो रहा
भ्रमित हो रही है  जनता हर कोई विश्वास खो रहा

आश्वासन है बुलिट ट्रेन द्रुतिगति से जल्दी दौड़ेगी
बल्लव भाई की प्रतिमा फिर से अतीत से जोड़ेगी
राम लला का भव्य मदिर सतयुग का गौरव लायेगा
पर क्या इस विकास से भूखा पेट उभर पायेगा

लगता है हम भूल रहे हैं क्या आवश्यक क्या अच्छा है
छवि सुधारने के लालच में जनता का हित कच्चा है
हर धीरज की सीमा है, जब भी ये पार हो जायेगी
चुपचाप न बैठेगी जनता परिवर्तन को चिल्लायेगी 

श्रीप्रकाश शुक्ल

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