जरा झलक मिल जा्ये
जरा झलक मिल जाये यदि मुस्कान की
जिसमें कुसुमित दिखे हमें आशा हर इंसान की
तब समझेंगे मेरे घर में सूरज निकल रहा है
अभी तलक तो हर आश्वासन विफल रहा है
मंहगाई में बिंधा चक्र जीवन का अटक रहा है
हर गरीब याचक है धनवान और धनवान हो रहा
भ्रमित हो रही है जनता हर कोई विश्वास खो रहा
आश्वासन है बुलिट ट्रेन द्रुतिगति से जल्दी दौड़ेगी
बल्लव भाई की प्रतिमा फिर से अतीत से जोड़ेगी
राम लला का भव्य मदिर सतयुग का गौरव लायेगा
पर क्या इस विकास से भूखा पेट उभर पायेगा
लगता है हम भूल रहे हैं क्या आवश्यक क्या अच्छा है
छवि सुधारने के लालच में जनता का हित कच्चा है
हर धीरज की सीमा है, जब भी ये पार हो जायेगी
चुपचाप न बैठेगी जनता परिवर्तन को चिल्लायेगी
श्रीप्रकाश शुक्ल
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