अपने अम्बर का छोर
भक्ति भाव से अनुरत हो करना चाहूँ मैं गान
अपने अम्बर का छोर हमें दे माँ शारदे महान
जब भी भाव उमड़ अंतस से अधर कोर तक आया
शब्द नहीं संगत दे पाये बिखरी लय अरु तान
सुना, भाव की तू भूखी है, आडम्बर नहीं पसंद तुझे
निर्मल मन से आ पहुंंचा हूँ, यद्यपि मैले परिधान
बुद्धि दायिनी गीत बोधिनी संगीता तू जग माता
तू ही एक अकेली है, जो निरसित करती अभिमान
मैं हूँ एक अकिंचन माँ "श्री" शरण हमें दे नेह हमें दे
मन से मेरे मिटा अँधेरे, ज्योतित कर संज्ञान
श्रीप्रकाश शुक्ल
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