Monday 5 February 2018

आखिर शब्द कहाँ हैं वे 

हम उस देश के वासी हैं    
जहाँ शब्द गरिमा पाते हैं 
शब्दों की अस्मिता हेतु हम
सर्वस्व न्यौछावर कर जाते हैं 

शस्त्र जिसे कर सके नहीं 
शब्दों ने कर दिखलाया है 
शब्दों के महज संयोजन ने 
नव इतिहास रचाया है 

आखिर शब्द कहाँ हैं वे 
जो नृप को बन भिजवाते थे 
शब्द हेतु योद्धा रण में
हरि को शस्त्र  गहाते थे 

शब्द,आखिर कहाँ हैं वे 
जो इतना जूनून भर जाते थे 
पत्नी, पुत्र सहित भूपति खुद,  
शब्दों की खातिर बिक जाते थे 

आखिर शब्द कहाँ वे 
जो असंभाव्य करवाते थे 
सामान्य पुरुष को प्रेरित
 कर महाग्रन्थ रचवाते थे 

भुला रहे अब अपनी संस्कृति  
कुछ भी अनर्गल कह जाते है 
और, दूसरे क्षण ही उसको 
लज्जा छोड़, निगल जाते हैं 

ये मूल्य नहीं हैं वो जिन पर 
हम होते रहे सदा गर्वान्वित 
ये अवनति के प्रथम चिन्ह हैं  
परिलक्षित जिनमे अनहित
 
क्यों न विवेक से मंथन कर 
हम पहले सोचें  फिर तोलें
अहम् भाव से  प्रेरित  हो 
क्यों निन्दनीय अप्रिय बोलें 

श्रीप्रकाश शुक्ल  

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