ईंट का बदला पत्थर से
कटते सर वीर जवानों के नित, हम गाल बजाना जानते हैं
दो से पचास गज घुस आये,जागे तब, ऐसा सोना जानते है
नहीं किसी ने बढ़कर पूछा इतनी गफलत किस तरह हुयी
केवल शब्दों के बाण छोड़, हम पीठ थप थपाना जानते हैं
हम सभी जानते, दुश्मन ज़ालिम है कूट कूट कर द्वेष भरा
और ज्ञात है कि लातों के भूत कभी बातों से नहीं मानते हैं
रण में हारे हुए वीर को जग में कातर दृष्टि से देखा जाता
दुश्मन को जो धुल चटाये उस पौरुष को सब पहचानते हैं
बहुत हो चुका, असहनीय अब, ऐसी ज़िल्लत में रहना "श्री "
हर ईंट का बदला पत्थर से होगा, आओ मिलकर ठानते हैं
श्रीप्रकाश शुक्ल
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