वर्ष नया मंगलमय कहने
नहीं चाहती बाहर निकले, वर्ष नया मंगलमय कहने
विगत वर्ष के आने पर कितनी मन्नतें मनायीं थीं
फलीभूत हो सकी न कोई कितने कष्ट पड़े सहने
सद्भाव आपसी नष्ट हो गया कैसे फिर आगे बढ़ पाते
उड़ने के पहले काट दिए हों जैसे पंखी के पखने
सदा सत्य पथ पर चलकर घनघोर तिमिर से लड़ने का
संकल्प ह्रदय जो बांधा था, लगा तीव्रता से ढहने
वर्ष अंत तक स्थिति ये है सारा जगत कलुषमय है "श्री "
ध्वंस पड़ी उम्मीदों में अब कौन बढ़ेगा हिम्मत करने
श्रीप्रकाश शुक्ल
दिनांक 10/01/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
फिर भी एक आस बने रहती है सुधार के लिए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
नए साल सभी के लिए शुभ हो यही मनोकामना है
सच कहाँ फिर भी उम्मीद पर दुनिया जिन्दा है
ReplyDeleteभले ही हम अपनी कथनी और करनी पर शर्मिदा हैैं
http://savanxxx.blogspot.in