Wednesday 9 November 2016

अंधकार के क्षण जल जाते 
भौतिकता के बढ़ते प्रभाव में 
कोमल तत्व विलीन हो रहे ।                            
हम खुद ही अपनी राहों में 
कंकड़ पत्थर के बीज बो रहे ॥ 
दुःख अप्रियता और विरोध के 
लगा रहे हम बृक्ष कटीले । 
गहरी खायी खोद रखी है 
उगा रखे तंगदस्ती टीले ॥ 
मानवता को भूल आज 
दे रहे साथ जो अनाचार का । 
बुद्धिहीन असहाय सरल  हैं 
बोझा लादे कुत्सित विचार का ॥  
मानवता से विरत व्यक्ति 
कल्याण मार्ग क्या चल पाएगा ।  
क्षमा,सत्यता ,धीरज तजकर 
पशु समान ही रह जाएगा ॥ 
जो हम तिमिराच्छादित अंतस में
 स्नेह शांति के दीप जलाते । 
जीवन आँगन प्रकाशमय होता,
 अंधकार के क्षण जल जाते ॥ 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

  

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