Sunday 18 September 2016

किसी अधर पर नहीं

हम स्वतंत्र भारत के वासी अपना भाग्य स्वयं लिखते हैं 
फिर क्यों  द्वेष घृणा के पौधे हर घर में पलते दिखते हैं 
जैसे जैसे हम बड़े हुए, साथी सद्भाव साथ छोड़ता गया 
माल्यार्पण सुख का लालच उजले सम्बन्ध तोड़ता गया 

अपनत्व भरे सुखमय अतीत की यादें मन में वाकी हैं 
चारो ओर भीड़ उमड़ी है फिर भी जीवन एकाकी है  
किसी अधर पर नहीं दिखी,चिंता मुक्त हंसी अब तक 
अवसादों के सागर में डूबा,गुजरेगा ये जीवन कब तक 

जीवन का अपना अर्थ न होता, अर्थ डालना होता है 
जीवन तो मात्र एक अवसर है, खुद संभालना होता है 
सांसों को नयी सृजनता दो, व्यर्थ न यों बरबाद करो 
नाचो गाओ, गीत रचो, खुद को खोजो, प्रभु ध्यान धरो 

 श्रीप्रकाश शुक्ल 

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