Sunday 29 May 2016

ढूंढती मुस्कान मेरी
प्रातः से संध्या समय तक भार ओढ़े व्यस्तता का
बीतता जाता समय नित भाव भरता विफलता का 
सब कार्य तो चल ही रहे हैं  पर न दिखता चाहिए जो 
अनुभूति सच्ची निगल जाता बोध इक परपंचता का 
ढूंढती मुस्कान मेरी घर की हर दीवार कोना और वीथी 
पर मैं उसको कैसे ओढूँ, जब भाव  उर में सहृदयता का 
मैं जानती अच्छी तरह नैराश्य के ये भाव चिंता जनक हैं  
और बोध है कि  भूल है फल भोगना  भवितव्यतता का 
संकल्प ले निज लक्ष्य का और कर्तव्य पथ पर अडिग रहना 
अनुभूति सुख की संजो रखना, सद्मार्ग है "श्री" सफलता का 
श्रीप्रकाश शुक्ल 

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