दादी/अइया
मेरी एक दादी थीं जो चुपचाप रहत ीं थीं i
ग़लती कोई भी करे डाट वह सह्तीं थीं ii
एक दिन वह अपना दायित्व भूलीं थ ीं i
गले में फंदा डाल छत से झूलीं थ ीं ii
पर एक बात मेरे छोटे से दिमाग म ें अटकी थी i
दादी के पैर तो जमीन पर थे फिर कैसे लटकीं थीं ii
बड़ी देर से मुश्किल यह सोच पा या था i
उनके पति ने ही उन्हें मार कर ल टकाया था ii
गाँव के भूरे भंगी ने अपना धै र्य छोडा था I
जेठ की दुपहरी में नंगे पैरों ह ी थाने दौड़ा था ii
आयी थी पुलिस पर समाज ने सहानभू ति दिखाई थी i
पुलिस को पैसे दे दादी की अर्थी जलवाई थी ii
यदि समाज ने विवेक से काम लिया होता I
उस उजियारे शुक्ल को काली कोठरी में दिया होता ii
तो समाज में नारी की स्थिती कुछ और होती I
हवेली टोला की चाची, ब्रिज की क िशोरी, भटेले की बहिन, दिनेश की दुल्हिन,
फैनी की बेटी आज घर होती II
श्रीप्रकाश शुक्ल
दिल्ली २३ मई १९८५
No comments:
Post a Comment