Thursday 7 April 2016

रंग चुरा कर
 
रंग चुरा कर इंद्र धनुष से रगीं तिरंगी चुनरी एक,  
इस चुनरी को ओढ़ मादरे वतन बनी भारत माता 
वेदों ने उद्घोष किया "'माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या," 
भारतवासी का इस माँ से हुआ यही स्थापित नाता 

आओ इतिहास पढ़ें अपना कैसे जन्मी भारत माता,
लिपटाये बाँकुरे राष्ट्र के अपने पावन आँचल में  
स्वीकारा सब ने इसको राष्ट्रीय एकता का प्रतीक, 
सभी धर्म के अनुयायी स्वेच्छा से जुटे शरण स्थल में  

इस माँ ने हर भारतीय को एक सूत्र में बाँध रखा है, 
और दिए हैं एक भाव से पलने, बढने  के अवसर 
हर बालक भी इस माँ के प्रति रखता है अटूट श्रद्धा, और सदा सम्मान दिया है अपनी जननी से बढ़कर 

पर कुछ भटके युवक, किसी झूठ बहकावे में आकर,  
जीवन का सद मार्ग छोड़ अपनी जिद पर अड़े हुए हैं 
भारत माँ की जय न कहेंगे ऐसा अड़ियल रुख लेकर  
देश तोड़ने की  विधि से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं 

मत भूलो ! हर भारतीय के दिल में भारत बसता है
इसकी अखंडता पर कोई भी आँच न आने पायेगी    
ऐसे कुत्सित प्रयास उगते ही कुचल दिए जायेंगे
भावना एकता की सदैव अमर बेल सी लहरायेगी 

इससे मंतव्य मेरा मानो, मत छेड़ो ये चिंगारी तुम  
भडक गयी तो फिर ये तुमसे नहीं संभाली जायेगी 
अपना तो सर्वश्व नाश कर बैठोगे ही बिन कारण 
सारी पृथ्वी पर भारत की छवि धूमिल कर जायेगी 

 श्रीप्रकाश शुक्ल 

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