Thursday 7 April 2016

इस पनघट पर तो

इस पनघट पर तो प्यासों की  भीड़ सदा ही रहती है 
दो घूँट नाम रस पीने को जिभ्या लालायित रहती है 

व्यर्थ गंवाया जीवन बन्दे जो न प्रभु का नाम लिया 
नाम बडा  होता प्रभु से भी, ऐसा दुनियाँ कहती है 

मन की रीती गागर में तुम राम नाम अमृत भर लो 
शनै शनै जिस के रिसने से भीत पाप की ढहती है 

नामोच्चारण करने से आधि व्याधि मिट जाते है 
अन्तःकरण शुद्ध होता, सुख, शांति, सरलता बहती है 

सबसे सहज उपाय यही "श्री "कलियुग में बतलाया है 
इसे बिसारे बैठी दुनियाँ,  कष्ट व्यर्थ में सहती है 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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