इस पनघट पर तो
दो घूँट नाम रस पीने को जिभ्या लालायित रहती है
व्यर्थ गंवाया जीवन बन्दे जो न प्रभु का नाम लिया
नाम बडा होता प्रभु से भी, ऐसा दुनियाँ कहती है
मन की रीती गागर में तुम राम नाम अमृत भर लो
शनै शनै जिस के रिसने से भीत पाप की ढहती है
नामोच्चारण करने से आधि व्याधि मिट जाते है
अन्तःकरण शुद्ध होता, सुख, शांति, सरलता बहती है
सबसे सहज उपाय यही "श्री "कलियुग में बतलाया है
इसे बिसारे बैठी दुनियाँ, कष्ट व्यर्थ में सहती है
श्रीप्रकाश शुक्ल
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