Thursday 7 April 2016

फागुन का

एक  वर्ष में एक बार ही, आता  है फागुन का महिना 
प्रेम रंग रस की गठरी ले  आता है फागुन का महिना 
प्रकृति नटी बस  एक बार ही करती है  सोलह श्रृंगार 
हर प्राणी के तन अरु मन में भर देती निस्सीम प्यार 

 फूलों से लदे पेड़ विलसें , बौर  भरें कामांग डालियाँ  
 ओढ़े  धरा वसंती साड़ी , झूमें  गेहूं की पकी बालियां 
 हो मदहोशी में डूबा मन, चाहत थिरकन की पावों में 
 ढोलक की थाप भरे मस्ती, मल्हर राग भरे गांवों में   

 दिव्य रश्मियाँ दिनकर की, अनुभूति सुखद दें प्राणों को 
 उर उकसी उमंग की लहरें ऊर्ज्वसित कर दें अरमानों को 
 हर प्राणी के रोम रोम में जब मस्ती भरे बयार का झौका 
 दस्तक देता खड़ा द्वार पर समझो तब खुमार फागुन का   

  रंगरस की ऐसी मादकता फागुन में छाती कण कण में
  कपट द्रोह की सकल भावना मिट जाती है क्षण भर में 
  मंगल भाव उमड़ते उर में, मन में भर  इठलाता उजास 
  कुसुमाकर आकर फागुन में, करता प्रदीप्त हर नयी आस 

  ग्यारह महिनों की थकान जाता मिटा माह फागुन का 
  नर नारी सब ही के मन को, जाता रिझा माह फागुन का 
  प्रेम मुदित कर सार्थक करता फागुन सर्वविदित महिमा 
  जिस गौरव से रचा प्रकृति ने, पूरित करता सारी गरिमा 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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