Wednesday 13 January 2016

मेरी आतुर आँखों में हैं 

मेरी आतुर आँखों में हैं , 
स्वप्न तैरते जो अब तक  
अब घडी आगयी, वे पँहुचें,  
अपने वांछित परिणाम तलक  

शांति और सौहाद्र मुख्यतः, 
हर समाज  का सपना है   
पर इन्हें अधिष्ठित करने को,  
नयी व्यवस्था रचना है   

मानव से मानव  दूर करें, 
ऐसे प्रतीक औचित्य खो चुके   
जाति धर्म के बंधन टूटें, तो
समझो, गहरा कलुष धो चुके   

शिक्षा रोजी  के साधन यदि, 
बिना विषमता सभी पा सकें  
तो द्वेष द्रोह को तिलांजलि दे,   
मधुर प्रेम  सद्भाव आ  सकें 

 हों, शासन की नीतियां सुघढ़ 
प्रकृति पुरुष का सम विकास हो 
देश सुरक्षित बाह्याभ्यन्तर हो 
कमजोर वर्ग की ह्रास त्रास हो  

ये कार्य मांगता हम सब का,  
आधारभूत परिपेक्ष्य अलग हो  
रहे ध्यान परहित का हरदम,
निस्वार्थ कर्म ही सेवाव्रत हो

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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