केसर घोल रहा है सूरज, अभिनन्दन
नीले नभ में छटी बदलियाँ, मिहिर रश्मियाँ खिल आयीं
अम्बर की परिमिति नापने, खग दल ने पाखें फैलायीं
तट पर बाँध सुरक्षित नौका, जो सोये थे हारे, मन मारे
लहरों का सीना चीर बढ़े वो बीच भंवर में, छोड़ किनारे
भू पर सिंहनाद गूंजा, नाच उठा सारा जन गन
केसर घोल रहा है सूरज, अभिनन्दन
लोक तंत्र की दीवारों को खोखला कर रही थी जो दीमक
उसको आमूल नष्ट करने को रचे गए अनुकूल नियामक
पर कौओं की काँव काँव ने होने न दिया सार्थक चिन्तन
अध्यादेश का पर्वत लेकर आ पहुंचा तब मारुति नंदन
हड़बड़ी मची राक्षस दल में इसका अब क्या निराकरन ?
केसर घोल रहा है सूरज, अभिनन्दन
राज प्रासादों में बैठे जो आंक कर रहे थे राज्य व्यवस्था
असलियत जमीनी से जिनका रहा न कोई कभी वास्ता
ऐसे पराश्रयी दक्षों को सम्मान पूर्वक विदा कर दिया
नीती आयोग गठन कर के भारत रूपांतर शुरू कर दिया
जीवन के शाश्वत मूल्यों का हो न सकेगा अब विघटन
केसर घोल रहा है सूरज, अभिनन्दन
जन विकास के हेतु बन रहीं नित प्रति नयी योजनाएं
जनता में विश्वास भर रहा, मिट रही अमंगल शंकाएं
अब वो दिन ज्यादह दूर नहीं जब चमकेगा सम्पूर्ण चमन
ऐसी रचना के सूत्रधार को आओ हम सब मिल करें नमन
केसर घोल रहा है सूरज, अभिनन्दन
श्रीप्रकाश शुक्ल
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