किसे दोष दूँ
किसे दोष दूँ जब हमीं, रहे कूप मंडूक
जैसे जैसे बढ़ रहा, जग में भौतिक ज्ञान
किसे दोष दूँ उचटता, मन से प्रभु का ध्यान
रहते स्वजन विदेश में, मन रहता आपन्न
किसे दोष दूँ हम स्वयं, रहे प्रलोभ निमग्न
सुख दुःख के क्षण पीर दें, जब भी करते याद
किसे दोष दूँ खुद करें, अपना दिन बरबाद
नाकामी का ठीकरा, औरों के सर फोड़
किसे दोष दूँ हम सभी, ढूंढें दुःख का तोड़
श्रीप्रकाश शुक्ल
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