Saturday 26 July 2014

किसी की अधूरी कहानी

किसी की अधूरी कहानी कहूँ, 
या कहूँ ये कहानी है सारे जहाँ की 
यहाँ खुद ही खोया हुआ आदमी है 
दिखायेगा सच राह किसको कहाँ की 

मुंह पर चढ़ाये हुए हैं मुखौटे, 
असलियत को छुपाये जिए जा रहे हैं 
ख़लीफ़ा बनें कैसे सारे जहाँ के 
क़त्ल अपने सगों का किये जा रहे हैं 

किताबी उसूलों को रख ताक पर 
पाप क्या पुण्य क्या है समझा रहे हैं 
कहानी न अब तक जो बिस्मिल हुयी 
नेस्त नाबूद कर खुद पै इतरा रहे हैं 

ये  हैं  इन्सान या फिर हैवान हैं, 
जो इंसानियत को मिटाने चले हैं  
बेगुनाहों को जो,बारूद में झोंक दे 
कैसे वो या कि उनके सलीके भले हैं 

अमन चैन की ले के ख्वाइश जो 
दिल में, अल्लाह से कर रहे थे दुआ  
आज उनका ही घर जंगे-मैदां बना 
समझ से परे है,  ये कैसे हुआ 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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