अभिमंत्रण
सीना तान के रहना जग में डरो न भीगी बिल्ली से
याद रखो अपने भुजबल से वहां खड़े हो जहाँ खड़े हो
नहीं किसी से कमतर हो तुम लाड़-प्यार से पले बढ़े हो
जिस दिन तुमने भारत छोड़ा हमने चाय पिलाई थी
दिल मसोस के खड़ा रहा मैं आँख मेरी भर आई थी
माँ -बापू को तुमने अपनी मजबूरी समझायी थी
मैं सुनता चुपचाप रहा वो घड़ी अधिक दुखदायी थी
मैंने कमर कसी थी उस दिन गंगा पुत्र याद आये थे
जीवन के सुखमय क्षण मैंने जन सेवा भेंट चढ़ाये थे
याद तुम्हारी भरे ह्रदय में जन जन से संपर्क किया
संकल्प आज पूरा करने , माँ गंगा ने आशीष दिया
आज यहां पर खोल रहा हूँ साधन सुख सुविधा के सारे
यहाँ आपका अपना घर है खुले हुए हैं सारे द्वारे
खुली बाँह आवाहन करता पथ में नयन बिछाये हैं
बीती घड़ी कष्टमय दिन की अब अच्छे दिन आये हैं
श्रीप्रकाश शुक्ल
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