Saturday 26 July 2014

समय चक्र की गति से 

जीवन क्रम के समय काल में मौसम के बदलते फेरे हैं 
मिलती कभी धूप हंसती सी कभी बदलियों के घेरे हैं 
अक्सर यही सोचते हम मेरे ही घर क्यों गाज गिरी 
मेरे हाथों से तो कभी, सपने  में  भी चीटी  न मरी 

पर क्योंं नहीं समझ पाते  समय चक्र की गति अबाध है 
भूत भविष्य और वर्तमान में होना  इसका  निर्विबाद है 
शायद यही मूल कारण है अनवरत चक्र चलता रहता है   
और नियति की मार हर कोई, कर्मानुसार  ही सहता है 

पर जब समय चक्र की गति से तारतम्य बन जाता है  
तो फिर मंजिल बने सुगम फल श्रम का मिल जाता है  
वो विचार सब से बलशाली जिसका "समय"आ गया है 
जिसने सुख दुःख हँस कर झेला जीने का अर्थ पा गया है 
 
श्रीप्रकाश शुक्ल 

No comments:

Post a Comment