Sunday 13 April 2014

रचे तोरण और बन्दनवार तेरे आगमन को

रचे तोरण और बन्दनवार तेरे आगमन को 
बैठे रहे पलकें बिछाये पथ तुम्हारे हम प्रतीक्षित 
तुम न आये लौटकर मोहन मदन,मेरे सखे 
कैसे बताएं किस तरह हम जी रहीं सखियाँ दुखित   

अश्रुओं की धार जब से तुम गये टूटी नहीं हैं 
याद पल भर भी तुम्हारी ह्रदय से छूटी नहीं है  
सूना पड़ा वो यमुन तट ग्वाल सब बेचैन हैं 
झलक पाने को तेरी निश दिन तड़पते नैन हैं 

आज उद्धव जी पधारे ज्ञान दें निर्लिप्तता का 
हम अनंगी प्रेम प्यासे क्या करें उस विद्वता का 
जिसको सुनकर पीर मन की तनिक भी घटती नहीं
मूर्ति जो दिल में गढ़ी तिल मात्र भी हटती नहीं   

आप हमको भूल जाएँ पर न सकते भूल हम 
दूरियां कितनी बढ़ें अनुरक्ति पर होती न कम 
हम पथिक हैं प्रेम पथ के प्रेम ही बस सार है 
जो न प्रिय के साथ हों तो जिंदगी निस्सार है  


श्रीप्रकाश शुक्ल

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