Thursday 6 March 2014

किस रूप की सम्मोहनी

किस रूप की सम्मोहनी ने जाल ये भू पर बिछाया 
कण कण हुआ सौंदर्य रंजित जैसे हो दैवीय  माया  
भोर की रवि रश्मियाँ ने प्रकृति में आह्लाद लाया  
उन्मत्त तरुवर झूम उट्ठे खग बृंद ने मृदु गीत गाया 

सरिता, सरोवर हो मुदित  हठखेलियाँ सी कर रहे 
फूले कमल, अलि भूल रस, हर्षित किलोलें भर रहे 
जलचर मगन, बहु प्रीत से घन अम्बु भू पर झर रहे 
उर उल्लसित, पा इक झलक जन जीव प्रज्ञा हर रहे 

कीलाल बिन तड़ित्वान् के टुकड़े बिचरते गगन में 
ऐसे लगें जैसे कि अनगिन हंस हों उड़ते मगन में 
रूप की सम्मोहनी ने, क्षिति बदन प्लावित किया 
सानिद्ध्य देकर जगत को अनुताप सारा हर लिया 

श्रीप्रकाश शुक्ल 


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