Tuesday 31 December 2013

रूप अपना देखा करती है

    बेटी सर्वोत्तम कृति विधि की कारुण्य,दया,ममता धारे 
  मूर्ति प्रेम की, ढ़ेरी साहस की, रूप अनेकों सहज संभारे   
  बेटी विकास है माँ जननी का, बेटी भाई की सबल बांह 
  बेटी कौमुदी पिता श्री की, जो देता शीतल बट की छाँह   
  
  बेटी ऐसी कृति,माँ जिसमें सदा रूप अपना देखा करती है   
  बेटी ऐसी कृति,माँ जिसमें निज स्वप्न संजोये धरती है   
  बेटी ऐसी कृति,माँ जिसमें अपनी,साँसें संभाल रखती है  
  बेटी ऐसी कृति,माँ जिसमें,जग का सारा दुलार भरती है  

  बिन बेटी के माँ, बिना माँ के बेटी,सदा अधूरी रहती है   
  बेटी की घर से विदा सदा हर माँ की मजबूरी रहती है 
  माँ की आकांक्षायें आत्मसात कर बेटी फलीभूत करती है   
  बेटी माँ के सुखदा आँचल में जीवन भर खुशियां भरती है   
   
    श्रीप्रकाश शुक्ल 

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