वेदना पर चेतना की जीत होगी
परिवेश सारे जगत का,आज चिंताजनक है
द्वेष की चहुँ ओर ही, देती सुनाई खनक है
अनुदारता की भावना,हर ह्रदय में पल रही
प्रतिशोध की ज्वाला, द्वार पर ही जल रही
दुःख दारुण हो निवारण कौन सी वो नीति होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
अह्सास सुख और दुःख का मानसिक इक कृत्य है
अंतर न कर पाना, निपट अवबोध का अल्पत्व है
संज्ञान कर जो परिस्थिति, ले सका निर्णय सही
जिन्दगी की डगर उसकी, सदा ही उज्ज्वल रही
यदि सजग, तो पूतना अनुसाल की होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
क्या हुआ जो आज सारे मूल्य थोथे पड़ गए
स्वार्थ रक्षण हेतु सब सदभाव मैले पड़ गए
तन मनन की सहज वृत्ति आज रूठी सी पड़ी
सम्पूर्ण जग को निगलने,समय की सुरसा खड़ी
विश्व शांति सृजन में सद्भावना ही मीत होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
श्रीप्रकाश शुक्ल
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