Thursday 11 July 2013

प्रेयसि  प्रकृति पलकों रहे

बादल फटा, धरती फटी, दर्द का दरिया बहा 
माँ की सूनी गोद रोई, फिर भी तू क्यों चुप रहा 

मानता हूँ भूल कुछ, हमसे भुलावे में हुयी
पर रोज़ हम मिलते रहे, तूने कभी कुछ कहा 

तू जानता अच्छी तरह, दिल में हमारे तू बसा 
तेरी खातिर इस जहाँ में, मैंने क्या क्या ना सहा 

बात अब मेरी नहीं, मात्र तेरी शान की है  
रोकी अब जो त्रासदीसब लगायें कहकहा 

सीख ऐसे हादसे से, ले चुका है आज " श्री"
प्रेयसि पृकृति पलकों रहे,  ये मेरा बादा रहा 


श्रीप्रकाश शुक्ल 

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