Tuesday 23 April 2013


कहानी कभी फिर सुनाना

कालिमा से पुते चित्र, हैं साथ इतने, संभव नहीं है इन्हें भूल जाना  
 कोई नहीं अब भरोसा करेगा, ये झूठी कहानी कभी फिर सुनाना  


नियति के थपेड़ों से होकर के आहत, सुध खो चुके हैं विहग सब चमन के  
प्रीति की डोर इतनी लचर हो गयी है, बिखर से गए सारे अनुबंध मन के  
न हृदयों की थाली में सजता वो धागा, जो बांधे रहा है युगों से सभी को 
जन जन के मन में भरे प्रेम रस जो, पुरवा मलय की न लाती सुरभि वो 

विगत वर्ष पैंसठ से सुनते रहे हम, बदलेगा मौसम बनेगा सुहाना  
कोई नहीं अब भरोसा करेगा, ये झूठी कहानी कभी फिर सुनाना  

वादे किये थे मिटेगी विषमता, हट सकेगा सदा के लिए दुःख का रोदन  
मेहनत की रोटी सभी खा सकेंगे, न छीनेगा कोई किसी का भी भोजन  
भूखी चितवन खड़ी देख के पार्श्व में, चीर देता है मन एक अनजाना भय  
परियोजनायें सकल रेत की भीत सी, कोई युक्ति न सूझे जो बदले समय 

जब भरा हो दिल में धुंआ द्वेष गहरा, दुष्कर है तब प्रीति के गीत गाना    
कोई नहीं अब भरोसा करेगा, ये झूठी कहानी कभी फिर सुनाना  

श्रीप्रकाश शुक्ल 



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