Tuesday 12 February 2013

तुमसे कितना प्यार मुझे है 

उन्मत्त मधुप झुंझला कर बोला कलिके,तू कितनी निर्मोही
मैं घूम घूम कर  हुआ क्लांत, 
तू पलकें  ढांप चैन  से सोयी
किस तरह  बताऊँ तुझको पगली,तुमसे कितना प्यार मुझे है
सारे दिन मैं  रस निमग्न  था पर  ना मन की  प्यास बुझे है

मृदुहास अधर धर कलिका ने यों  कहा मधुप से ओ  दीवाने
स्पर्श जनित सुख, दुःख के कारण ये तो सारी दुनियां  जाने
मैं समझ रही हूँ समय माघ का रतिवर का सबसे प्रिय पल है
काम वासना से उर्जस्वित  थल जल चर, हर कोई विकल है

 आक्रोश प्रेम अभिव्यक्ति का अत्यंत सरल बचकाना ढंग है
 मेरे  जीवन का औचित्य, मात्र  तेरा  ही  प्यार, तेरा संग है 

 अरमान नहीं आ कर के घेरे, मुझे कोई   मधुपों की  टोली 
 मेरा तू सर्वस्व, तेरी चाहत जीवन, साँसे  मेरी तेरी बोली  

 केवल आभास तेरे होने का , मेरे जीवन का सार रहा  
तेरी उच्छ्वासों को छू कर , मौसम का सारा भार सहा 
मैं पीती रहती हूँ जो गा कर, तू इस उपवन में भरता है 
फिर भी कितना प्यार तुझे है, सुनने को दिल करता है 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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