Tuesday 4 September 2012

छवि का पनघट आज बना 
नहीं निमंत्रण कोई आया ,नहीं  बुलाबा, ना आवाहन 
उमड़ पड़े  श्रद्धालु  विपुल , भोले  का करने आराधन  
वस्त्र गेरुआ, काँधे  कांबड़, बंधा कमर पटके का छोर  
हर हर बोले  बढा जा रहा  भक्तों का गुट सुरसरि ओर 

छवि का पनघट आज बना सैलाब  एक गंगा तट पर 
प्रेम भाव से  भक्त चढ़ाते  बेलपत्र जल वृषभकेतु पर 
था सावन का पुण्य मास, संपन्न हुआ जब सागर मंथन 
आशुतोष पी गए घटाघट, बिष से भरा कलश, हर्षित मन 

रुंध गया कंठ में भरा हलाहल दग्ध कर रही प्रवल ज्वाल 
जिसे  शमन करने को अब भी जलाभिषेक करते हर साल 
देवादिदेव  शिव  महादेव  भोले  भंडारी  बे  मिसाल  
जो पूजन करते श्रावण में, पाते अभीष्ट फल हो निहाल   

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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