वेदना ने स्पर्श जब पाया तुम्हारा
मैं अकेला ही चला था, जिन्दगी की उस डगर पर
कांटे बिछाए खड़े थे, अनगिनत अवरोध जिस पर
फंस कुहासे में गयीं मुरझा, सभी आशा लताएँ
दूर मंजिल हो गयी , सन्मुख खडी थी विषमताएं
हारकर थक चूर हो, जब कभी तुमको पुकारा
पास, देखा, तुम खड़े थे दृष्टि का पाकर इशारा
मेरी सिसकती वेदना ने, स्पर्श जब पाया तुम्हारा
हो विकल तुम रो रहे थे भर ह्रदय, मन, मोह सारा
कैसा अजब वन्धन है ये, भक्त और भगवान का
ईश भी होते है व्याकुल , देख दुःख इंसान का
जब कभी भर प्रेम आंजुर , हम चढ़ाएंगे उसे
यह सुनिश्चित है सदा ही , साथ पायेंगे उसे
श्रीप्रकाश शुक्ल
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