जो लिखा हाथ की रेखाओं में
जो लिखा हाथ की रेखाओं में, सच पूछो गुमराही है
प्रारब्धों की बैसाखी ले , क्या मंजिल मिल पायी है ?
तुम कर्मवीर, हो कर्म निरत, रेखाएं नई उभर आयेंगीं
पुरुषार्थ विटप काटो छांटो, शाखाएँ नई बिखर जायेंगीं
याद करो वो अग्रजात , थे ज्ञान, कर्म, तप की जो खान
गीत बद्ध वेदों में अंकित, जिनके पौरुष, बल, कीर्तमान
रेखाएं बदलीं अशेष, रह कर्म योग प्रति पूर्ण समर्पित
लक्ष्य साध, मंजिल पायी, जीवन था संगरहित अर्पित
अनुसरण हस्त रेखाओं का, करते केवल आलस्य भरे
निष्क्रिय और निरुत्सुक रह, जीवन में रहते डरे डरे
सही मंत्र जीवन का है. जब तक प्राणों में स्वांश रहे
स्वकर्म रहे अभिरत मानव, जीवन सरिता निर्वाध बहे
श्रीप्रकाश शुक्ल
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