भू पर पग धर धरा उठा ले
हे मानव तू इस भूतल पर, विधि की सर्वश्रेष्ठ रचना,
प्रतिनिधि मुख्य बना कर भेजा, करने को सच सपना
शक्तियां अनेकों अर्पित कीं, विधि विधान से जग संचाले
जो भी साध्य अपेक्षित हों, विज्ञान ज्ञान से तू सब पाले
भू पर पग धर धरा उठा ले
संभव है तू उड़े व्योम में, अम्बर की सीमायें नापे,
ये भी संभव पद चिन्हों के, जलनिधि भीतर तू दे थापे
चीर पर्वतों का सीना तू, सुन्दर सुललित पंथ सुझा ले
नहीं त्याज्य है साथ जमीं का, चाहे तू सब निधियां पा ले
भू पर पग धर धरा उठा ले
दंभ, दर्प, अभिमान, क्रोध, जीवन माधुर्य नष्ट करते,
अज्ञान तिमिर आच्छदित हठ, बरबस ही प्रज्ञा हरते
ये असुर वृत्तियाँ पनपें ना, ऐसा जीवन लक्ष्य बना ले
द्वेष त्याग, शुचिता आधारित, सत्य पूर्ण तू पथ अपना ले
भू पर पग धर धरा उठा ले
नभ में उठी आंधियां चहुँदिश, तिमिर दिखे घनघोर घना,
जीवन के उद्विग्नों से, मानव दिखता भयभीत मना
तू आशा की कोकिल बन भर तान मधुर, नवगीत सजा ले
जन मन प्रमुदित हो, विहंस उठें , युक्ति कोई ऐसी अपना ले
भू पर पग धर धरा उठा ले
श्रीप्रकाश शुक्ल
-- Web:http://bikhreswar.blogspot.com/
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हे मानव तू इस भूतल पर, विधि की सर्वश्रेष्ठ रचना,
प्रतिनिधि मुख्य बना कर भेजा, करने को सच सपना
शक्तियां अनेकों अर्पित कीं, विधि विधान से जग संचाले
जो भी साध्य अपेक्षित हों, विज्ञान ज्ञान से तू सब पाले
भू पर पग धर धरा उठा ले
संभव है तू उड़े व्योम में, अम्बर की सीमायें नापे,
ये भी संभव पद चिन्हों के, जलनिधि भीतर तू दे थापे
चीर पर्वतों का सीना तू, सुन्दर सुललित पंथ सुझा ले
नहीं त्याज्य है साथ जमीं का, चाहे तू सब निधियां पा ले
भू पर पग धर धरा उठा ले
दंभ, दर्प, अभिमान, क्रोध, जीवन माधुर्य नष्ट करते,
अज्ञान तिमिर आच्छदित हठ, बरबस ही प्रज्ञा हरते
ये असुर वृत्तियाँ पनपें ना, ऐसा जीवन लक्ष्य बना ले
द्वेष त्याग, शुचिता आधारित, सत्य पूर्ण तू पथ अपना ले
भू पर पग धर धरा उठा ले
नभ में उठी आंधियां चहुँदिश, तिमिर दिखे घनघोर घना,
जीवन के उद्विग्नों से, मानव दिखता भयभीत मना
तू आशा की कोकिल बन भर तान मधुर, नवगीत सजा ले
जन मन प्रमुदित हो, विहंस उठें , युक्ति कोई ऐसी अपना ले
भू पर पग धर धरा उठा ले
श्रीप्रकाश शुक्ल
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