वचन :रचनाकार नारी को हर क्षेत्र में सामान अधिकार दिए जाने का समर्थक है पर आधुनिकता के नाम पर दैहिक स्वच्छंदता अपनाकर, वैभव प्राप्त करने की होड़ में, भारतीय संस्कृति की परिधि लांघ, केवल वस्तु बनकर रह जाने को असंगत समझता है | सह अस्तित्व से पुरुष के साथ एकाकार होकर रहने को ही जीवन की निधि मानता है |
मनु तुम कब समझोगे
कस्तूरी मृग बौराया सा, ढूंढें बन में, सुगंधि जैसे
मनु ने तो आचरण सहिंता, विधि विधान से रच,की, अर्पित
जीवन का व्यवहार कार्य, सम्भव हो, जिससे संचालित
अरी, अदिति क्या समझा तुमने, मनु से कोई भूल होगयी,
मानव मूल्य, अस्मिता, फलतः छतिग्रस्त, क्षीण, निर्मूल हो गयी
ये अवधारणा सर्वथा मिथ्या, सच से परे , संकुचित लगती,
मनु मुख के हर शब्द पुष्प से, जीवन बगिया अब भी सजती
यदि प्रसंग नारी का हो, जाज्वल्यमान थी आभा उसकी
श्रद्धा, ज्ञान ,शौर्य जननी, सर्वत्र पूज्या छवि जिसकी
वेदों ने माना नारी को, विधि का अमूल्य, दुर्लभ उपहार
श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, आराध्या, शाश्वत श्री, अनुपम अवतार
पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव, भारत भू पर गज़ब ढा रहा,
अविवेकशील, प्रतिस्पर्द्धा का ,पाठ निरंतर, पढ़ा जा रहा
वर्चस्व प्राप्त करने की धुनि में, आत्महीन नारी दिखती ,
अन्धानुकरण, अशुचिता में फंस स्वाभाविक संयम तजती
आत्मविवेचन कर सोचें, प्रज्ञा दें उदगारों को,
चुनें एक ? सहजीवन, समता, या स्वच्छंद विचारों को,
प्रतिमूर्ति लालशाओं की हों, विपणन रीति नीति चुनकर ,
या करें नियंत्रण नव युग का, धीर, वीर पूज्या बनकर
विपणन : बाजारू ,क्रय-विक्रय
श्रीप्रकाश शुक्ल
No comments:
Post a Comment