Saturday 19 November 2011


वचन :रचनाकार नारी को हर क्षेत्र में सामान अधिकार दिए जाने का समर्थक है पर आधुनिकता के नाम पर  दैहिक स्वच्छंदता अपनाकर, वैभव प्राप्त करने की होड़ में,  भारतीय संस्कृति की परिधि लांघ, केवल वस्तु बनकर रह जाने को असंगत समझता है | सह अस्तित्व से पुरुष के साथ एकाकार होकर रहने को ही जीवन की निधि मानता है | 

मनु  तुम कब समझोगे
 
मनु  तुम कब समझोगे, प्रश्न अनूठा, रहा अनुत्तरित कैसे, 
    कस्तूरी मृग बौराया सा,  ढूंढें बन में,  सुगंधि  जैसे
       मनु ने तो आचरण सहिंता, विधि विधान से रच,की, अर्पित 
           जीवन का व्यवहार कार्य,  सम्भव हो, जिससे संचालित

अरी, अदिति क्या समझा तुमने, मनु से कोई भूल होगयी,  
   मानव मूल्य, अस्मिता, फलतः छतिग्रस्त, क्षीण, निर्मूल हो गयी 
      ये अवधारणा सर्वथा  मिथ्या, सच से परे , संकुचित लगती, 
        मनु मुख के  हर शब्द पुष्प से, जीवन बगिया अब भी सजती 

यदि प्रसंग नारी का हो,  जाज्वल्यमान थी आभा उसकी 
    श्रद्धा, ज्ञान ,शौर्य जननी, सर्वत्र पूज्या  छवि जिसकी 
        वेदों ने  माना नारी  को, विधि का अमूल्य,  दुर्लभ उपहार 
            श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, आराध्या, शाश्वत श्री, अनुपम अवतार 

पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव, भारत भू पर  गज़ब ढा रहा, 
     अविवेकशील, प्रतिस्पर्द्धा का ,पाठ निरंतर, पढ़ा जा रहा 
          वर्चस्व प्राप्त करने की धुनि में, आत्महीन नारी दिखती ,
             अन्धानुकरण, अशुचिता में फंस स्वाभाविक  संयम तजती 

 आत्मविवेचन कर सोचें, प्रज्ञा दें उदगारों को,   
      चुनें  एक ? सहजीवन, समता, या स्वच्छंद विचारों को,  
         प्रतिमूर्ति लालशाओं की हों, विपणन रीति नीति चुनकर , 
              या करें नियंत्रण नव युग का, धीर, वीर पूज्या बनकर 
विपणन : बाजारू ,क्रय-विक्रय 
श्रीप्रकाश शुक्ल   

Saturday 5 November 2011


मृत्यु, तेरे आलिंगन के आकर्षण में
 
जीवन का कटु सत्य, शाश्वत सत्य, मृत्यु का आलिंगन,
  फिर होना  अशांत, आतंकित , मात्र  मनस्थिति  का  धुँधलापन     
    जो आया,  निश्चित जाएगा, अमरत्व  कभी संभाव्य नहीं
       जो जीते ही, निशदिन मरते,  इस से बढ़कर दुर्भाग्य नहीं 
 
 मृत्यु, तेरे आलिंगन  में,  देखा  जीवन तत्त्व समाहित,
  जो प्रबुद्ध थे समझ सके, अपवर्जन रख सके प्रवाहित 
    बैसे तो सारा जीवन ही, कट जाता है, धुनते बुनते, 
       सुख संचय, समृद्धि हेतु रतअनुचित उचित दिशा चुनते
 
  मृत्युतेरे  आकर्षण में, उन्मत्त नशा दीवानों का, ,   
  जो जनहित के पुण्य  यज्ञ में, हवन  करें  अरमानों  का 
    मृत्यु, संगिनी जीवन  की, आलिंगन कर, गल बाहें भरते
       असमय टूट बिखर जाते, उत्पीड़क सत्ता से लड़ते 
 
 ऐसे अनेक मानव महान, भारत भू पर आये, ले प्रण 
  जिनके अपूर्व आदर्श आज,सम्पूर्ण विश्व कर रहा अनुकरण
    ऐसे  कर्मठ बीरों की, गाथाएं रहतीं अजर अमर
       नयी  पीड़ियों के तरुणों में, भरतीं उर्जा, उल्लास प्रखर 
 
अपवर्जन:  सर्वस्व त्याग  की भावना

श्रीप्रकाश शुक्ल 

जिजीविषा बदनाम होगयी
 
संघर्षों के बीच झूलता रहा, जिन्दगी का  यायावर
  जब भी चाहा मुक्त तैरना,  खीच  ले गयी  नई भंवर
    जीवन नौका खेना दुष्कर, चर्चा ऐसी आम  होगयी
       लँगड़ाते अनुबंध निभाते, जिंदगानी एक काम होगयी 
                              जिजीविषा बदनाम होगयी
 
प्रेयसि पार्श्व  बैठकर देखूं, जल प्रपात  की धाराएं 
  प्रतिबिंबित हो जहाँ  रश्मियाँ,  सतरंगी आभा  फैलाएं
    खग बृंदों की कलरव ध्वनि,  जीवन में गुमनाम होगयी
      उलझे रहे प्रपंचो में,तब तक जीवन की शाम होगयी
                              जिजीविषा  बदनाम होगयी
 
जीवन है  पावन यज्ञसत्य  की खोज अग करनी है 
  आहुति देनी  होगी खुद कीह्रदय शांति यदि भरनी है
    कल कलुष मिटाने की चाहत,  मन की  चिंता धाम होगयी  
      दुरुह द्वन्द, दुविधा निबटाते, जीवन धार तमाम  होगयी 
              जिजीविषा बदनाम होगयी
 
आसक्ति, प्रलोभन, दुर्विचार, झंझावात रहे जीवन के
  अवगाहन कर मानव ने, दूभर कष्ट सहे  तन मन  के
    जब समझा इनके कारण  ही, जीवन की गति जाम होगयी  
              आँधियां  रुकीं , अहुटे बादल, और धुली सी घाम होगयी 
                               जिजीविषा अभिराम होगयी                  
 श्रीप्रकाश शुक्ल