पूज्य भाई जी की द्वितीय पुण्य तिथि पर सादर, सप्रेम पुष्पांजलि
मनस पटल पर आ छा जातीं, बातें कही अनकही हैं
जैसे जैसे समय बीतता, सुधियाँ और निकट होतीं हैं
सानिध्य आपका पा लेने को विचलित हो, वेकल रोतीं हैं
संबोधन की अनुराग भरी ध्वनि, घर गुंजित कर देती थी
छोटे छोटे संस्मरण चित्र, सहसा सन्मुख आ जाते हैं मन खो जाता अतीत में नेत्र अश्रु कण ढुलकाते हैं
कितना अपनत्व छलकता था, गोपाल, राम उच्चारण में
पा ,रा, के खिंचते हुए दीर्घ स्वर, भरते थे खुशियाँ मन में
हलो, श्रीप्रकाश शब्दावलि जब कानों से टकराती थीआ पहुंचा शक्ति स्रोत अपना, भावना उमड़ भर जाती थी
जब बिखरे हुए विशद कुनुबे में, बांछित मंतव्य नहीं आये
हम सभी हुए हतप्रभ हताश, दुःख के बादल आ मडराये
सान्त्वना पूर्ण सुविचारों की, गठरी ले साथ आप आये जैसे ऊँगली थामें मुट्ठी में, कोई सड़क पार करबाये
बिना आपके आज सभी, हम निपट अकेला पाते हैं
जीवन क़ी हर इक गतिविधि में आप याद आजाते हैं
आज खड़े पुष्पांजलि देते ह्रदय विदीर्ण हुए जाते हैं आप रहें प्रभु के समीप ही, हम सब यही मनाते हैं
श्रीप्रकाश शुक्ल
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