प्राण बूँद को तरसे
बीता असाढ़, आया सावन, बहती बयार, शीतल मनभावन
आये घिर बदरा, गगन मगन, हर्षित उल्लसित, धरा पावन
आतुर अधीर , संतप्त धरणि, प्रत्याशित दृग नभ ओर टिकाये
पहली फुहार की बाट जोहती, कसक भरे मन, मन ललचाये
फूटने लगीं कोपलें म्रदुल, तरुवर की शुष्क टहनियों में
झुरमुट से झींगुर की झीं झीं , भरती झनकार धमनियों में
नभ से टप टप झरतीं बूँदें अंतर्मन ऐसे सिमटीं
बरबस बिसराई सुधियाँ गत की, अनायास ही आ लिपटीं
पल पल बीते ,जैसे बीते युग ,जब से पिय बिछुरे घर से
पिय बिन कौन बंधाये धीर, काँपता ह्रदय अजाने डर से
भड़क उठी बेचैनी मन की, प्रिय बिन प्राण बूँद को तरसे
श्रीप्रकाश शुक्ल
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