Thursday 14 July 2011

मान्यवर : आदरणीय अचल जी द्वारा दिए गए वाक्याँश को ठीक तरह से न समझ पाने की स्थिति में एक झोंक में जो रचना बनी थी, आप सबके साथ बाँट रहा हूँ





सहायक सन्दर्भ :


अजगर करे ना चाकरी ------------


राम भरोसे जो रहें -----------------





कल की क्यों करते परवाह

यह चिंतन का प्रश्न अनूठा, कल की क्यों करते परवाह
बिन सोचे कल क्या होगा , क्या संभव है जीवन निर्वाह
बांछित है सार्थक चिंतन, जो चाहो, कल हो खुशहाल
पर चिंता और व्यग्रता डसते, जैसे हों बिष भरे व्याल


है मनुष्य सामाजिक प्राणी , जग से रहे अछूता कैसे
जीवन दिशा बदलनी होगी, चलती दिखे बयार जैसे
बिन सोचे अंजाम अगत का, काम जो कर जाते हैं
खोकर दिव्य अस्मिता, सालिग्राम बन जाते हैं


सबसे भले हैं मूढ़, युक्ति जो , तुलसी गुनकर बोली
खो बैठी औचित्य, महज़ बनकर रह गयी ठठोली
दास मलूका की सलाह में ,कुछ भी खरा नहीं है
पर्वत की चोटी पर भी, कुछ भी हरा नहीं है

दूर दर्शिता ही जीवन में , सही मार्ग दिखलाती है
अग्र सक्रियता आगे चलकर, जीवन गम्य बनाती है
चिंता त्याग, सही चिन्तन ,पथ प्रशस्त निश्चय कर देगा
जीवन होगा सुखद शांत, अनगिन खुशियाँ भर देगा


श्रीप्रकाश शुक्ल

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