Friday 27 May 2011

फूल ने सीखा महकना


फूल ने सीखा महकना , और बिखरायी सुरभि,
देता रहा आनंद नित , भूला न खिलना, खिलखिलाना
तारिकाएँ , बंध तिमिर भुज पांस में
आतना सह्तीं रहीं , पर न छोड़ा जगमगाना



अजानी राह जीवन की, कठिन , काटों भरी है
और गठरी फ़र्ज की, कमजोर कन्धों पर धरी है
मुश्किलों की आंधियां, आकर संजोया धैर्य हरतीं
टूटता विश्वास पल पल, मंजिलें गिरती, संवरतीं


पर तूं मानव बुद्धजीवी, अक्षम्य तेरा लडखडाना
पार कर अवरोध दुर्दिम, बस तुझे चलते ही जाना
टूट जाए तन, न टूटे मन, न छूटे मुस्कुराना
हर कृत्य फैलाए सुरभि, हर शब्द बन जाये तराना


याद तूं करले, उन्ही को याद करते है सभी,
निज स्वार्थ से उठकर, पराये काम करते जो कभी
सुन कहानी दर्द की, पीड़ा उमड़ कर बह निकलती
इंसानियत जिनके दिलों में, रोज उगती और पलती,


फूल ने सीखा महकना , और फैलायी सुरभि,
देता रहा आनंद नित,, भूला न खिलना, खिलखिलाना




श्रीप्रकाश शुक्ल

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