Friday 1 April 2011

जब भी मन पर छाये उदासी




सांसारिक जीवन क्रम चलता, जैसे चलता रहा प्रकृति क्रम,
पल उछाह, मायूसी ले, आते जाते, ऋतु परिवर्तन सम
जब भी चयनित मंतव्य हमारे, वांछित परिणाम नहीं लाते
होते हम, हतप्रभ, हतोत्साह, दुःख की दरिया में बह जाते


उचित यही, इन बिषम क्षणों में, रुकें, वस्तुस्थिति आंकें
जब भी मन में छाये उदासी , अपने अंतस में झाकें
पा एकाकी, स्वजन मित्र बिन, ये बादल छा जाते हैं
मन की शांति, धैर्य, प्रज्ञा सब साथ उड़ा ले जाते हैं


जब भी मन में छाये उदासी, समझो चित्त हुआ अस्थिर
जब पाओ नैराश्य विफलता, मानों विश्वास हटा निज पर
अनवरत करो निज नियत कार्य, सबल सोच परिप्रेक्ष्य पले
प्रतिकूल परस्थितियों में भी, ध्यान ध्येय से नहीं टले


 
श्रीप्रकाश शुक्ल

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