Monday 21 February 2011

आ सिरहाने रख जाते हैं


आ घेरें जब दुःख के बादल, और परिस्थितियाँ पाषाणी,
ओझल हो जब किरण आश की,जगत प्रभू सुधि में आते हैं
वसुर्वसुमना, दिव्यशक्ति सुन, अपने प्रिय की दुखभरी पुकारें
सुलभ, सुगम साधन के सपने, आ सिरहाने रख जाते हैं


बहुधा अतिशय प्रिय अपने , नियत कर्म के अनुबंधों में
छोड़ ह्रदय में टीस अनकही, हम से दूर चले जाते हैं
पर जब पाते प्रीति प्रतिध्वनि टकराती अपने कानों में
गठरी बाँध, प्रेम सन्देशे, आ सिरहाने रख जाते हैं


शैशव के अनुरक्ति सने पल, चित्रित होकर मनस पटल पर,
धीरे धीरे रिसते रिसते, अंतर में आ, सो जाते हैं
जब असीम सुख की लहरें, लेतीं हिलोर जीवन सरि में,
मेघदूत , वो पल आँचल भर, आ सिरहाने रख जाते हैं



वसुर्वसुमना- सब प्राणियों के निवास स्थान एवं उदार ह्रदय वाले


श्रीप्रकाश शुक्ल
कोई कुछ भी कहे भले, कोई कुछ समझे


कोई कुछ भी कहे भले, कोई कुछ समझे
चिंतनशील मनीषों ने राह चुनी समझे बूझे
दीमक दल सी कुरीतियाँ, खोखला कर रहीं थी समाज जब
रत रहे अनवरत जीवन भर, मिला न सार्थक हल जब तक
पथ था कंटकाकीर्ण दुर्गम, धाराएं प्रतिकूल बहीं
संकल्प भरे, खोजे विकल्प, मानी न कभी भी हार कहीं


छोटे राज्यों का जन शोषण, नारी को डसती सती प्रथा
सूदखोर के ऋण से दुखती, भूमिहरों की दुसह व्यथा
बाल  विवाह का भरकम बोझा, लदा हुआ कच्चे कन्धों पर
या फिर काले धंधों में, सराबोर वचपन के कर
अटल रहे अपने पथ पर,जब तक न खुले धागे उलझे
कोई कुछ भी कहे भले, कोई कुछ समझे


श्रीप्रकाश शुक्ल