Friday 31 December 2010

दिशा निर्धारण

 ऋषि मुनियों की पावन भू पर
     धन्य हुए हम जीवन पाकर
         सार्थक मूल्यों के आँचल ने
             बढा किया सब को दुलराकर

जिस जगती पर गर्व हमें था
      सच्चे, शुचि व्यवहारों का
         आज वहां पर जमघट दिखता
              चोर, उचक्के, आवारों का

छीन रहे इस भू के जाए
     खुद अपनों के शांति और सुख
         लूट खसोट और अर्थ परिग्रह
            जीवन के उद्देश्य प्रमुख

सत्ता के मैले हाथो से
     हाथ मिला पा रहे सहारा
        इनकी गतिविधियां शर्मनाक
            घर समाज आतंकित सारा

भद्र, प्रतिष्ठित,समाज सेवी,
    शासन के प्रतिनिधि, संरक्षक
        माया की लोलुपता में फंस
           आज बन गए समाज भक्षक

कहाँ खोगये मूल्य हमारे
     कहाँ खो गयीं निधियां शाश्वत
          पाश्चात्य हवाओं के झोंकों से
             संभवतः हम हुए पदच्युत


अभी समय है, खोज स्वयं को
    दिशा एक निर्धारित करलें
        पंक्ति अंत में खड़े हुए जो
            उनके संरक्षण का प्रण लें


श्रीप्रकाश शुक्ल

०१-०१-११

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