Friday 29 October 2010

शरद पूर्णिमा विभा

सम्पूर्ण कलाओं से परिपूरित,
      आज कलानिधि दिखे गगन में
          शीतल, शुभ्र ज्योत्स्ना फ़ैली,
           अम्बर और अवनि आँगन में
शक्ति, शांति का सुधा कलश,
       उलट दिया प्यासी धरती पर
          मदहोश हुए जन जन के मन,
           उल्लसित हुआ हर कण जगती पर
जब आ टकरायीं शुभ्र रश्मियाँ,
       अद्भुत, दिव्य ताज मुख ऊपर
          देदीप्यमान हो उठी मुखाभा,
           जैसे, तरुणी प्रथम मिलन पर
कितना सुखमय क्षण था यह,
      जब औषधेश सामीप्य निकटतम
          दुःख और व्याधि स्वतः विच्छेदित,
           कर अनन्य आशिष अनुपम

श्रीप्रकाश शुक्ल

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