Sunday 1 August 2010

प्रतिभाओं की कमी नहीं



विश्व भाल, चन्दन बिंदी सम, शोभित अपना सुन्दर देश
धर्म,वर्ण, वर्गीय विविधिता ,पाती जिसमें सम समावेश
विज्ञान,कला, साहित्य दक्षता, मिली हमें पैत्रिक धन में
प्रतिभाओं की कमी नहीं, किलक रही हर घर आंगन में

जन्मजात या फिर श्रम से, प्रतिभा चाहे समुचित निखार
गौरव,मान,स्तुति मिलकर, भरते कुशाग्रता, बल अपार
पांडित्य प्रखर भारत भू का, प्रतिभाओं की कमी नहीं
संतप्त हुआ जब भी समाज, बौछार ज्ञान की थमी नहीं


जब भी कहीं विश्व भर में, कष्टों के बादल छाते हैं
भारत के भावुक सरल हृदय, संवेदन से भर जाते है
प्रतिभापूर्ण प्रखर दिनकर, देदीप्य रश्मियाँ फैलाते हैं
निष्काम भाव से, निज हित तज, हम सदमार्ग दिखाते हैं

यह धरती जननी उस मेधा की,जिसमें निहित देश हित हो
जन कल्याण भावना प्रेरित,युग निर्माण बीज मिश्रित हो
वसुधैव कुटुम्बकम से बढ़कर , उक्ति कोई भी जमीं नहीं
जग हिताय सब कुछ अर्पण,यहाँ प्रतिभाओं की कमी नहीं


श्रीप्रकाश शुक्ल
२८ जुलाई २०१०
बोस्टन  

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