Wednesday 21 July 2010

मान्यवर, एक रचनाकार को किन किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिए क्या क्या सुनना पड़ता है और क्या मनोदशा होती है यहाँ चित्रण करने का प्रयास I कृपया प्रतिक्रिया अवश्य दें




सृजन यज्ञ


हे कवि हे सृजनकार,
जो मूल्य संजोये शिष्टि में
उनको कर परिलक्षित तूं ,
अपनी करुनामय दृष्टि में
दुर्भाव, धृष्टता भरे समीक्षण
अनगिन अवरोधन लायेंगे
मित्रों के ईर्षा भरे अनुसरण,
दर्दीला बिष फैलायेंगे
नीलकंठ बन यह सब तुमको,
शांत भाव पी लेना है
आलोचक के प्रत्योत्तर में,
होंठों को सी लेना है
यदि मार्ग चुना है रचना का,
तो फिर जी, कृतित्व के बल पर
अपनी प्रतिभा से हो प्रदीप्त,
अपने कौशल को उन्नत कर
कुत्सित, कटु, कटाक्ष ठुकरा,
सुजन-यज्ञ में समिधा जोड़
दुष्टों के गर्हित शब्द भुला,
मत भाग, सृजन मैदान छोड़


श्रीप्रकाश शुक्ल

1 comment:

  1. सम्यक दिशा निर्देश करती उपयोगी रचना.

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