Wednesday 14 July 2010

आप के साथ हैं हम


जब पराये देश,
घर से दूर,
किसी शाम
मन होता है उदास
और कोई अपना नहीं होता आस पास
कुरेदने लगता है शीतल समीर
दिल हो जाता है और भी अधीर
उमड़ते, घुमड़ते मेघों की टोली
आ बैठती है आँखों की कोरों पर
और सहसा झरने लगती है अश्रु धार
तब लगता है कि कोई अपना
याद कर रहा है,
शब्दों के पार हैं भाव , भावों के पार है आत्मन
आत्मन की पहुँच है अनंत
तभी तो आप सभी के साथ हैं हम चिरंतन और अनंतर

No comments:

Post a Comment