Saturday 26 June 2010

स्वयं की अनुभव की हुयी  एक घटना जिसने जिन्दगी को नए तरीके से देखने के लिए मजबूर कर दिया.
फौजी जीवन में यह पता ही नहीं चला कि साधारण मनुष्य कैसे जीवन यापन कर रहा है वो भी  केवल
नियति की मार से : पढ़िए


ब्रास की नेम प्लेट
कर्नल साहिब की ब्रास की नेम प्लेट,
                घर के दरबाजे से चोरी हो गयी
कर्नल झल्लाए, बोखलाए गुस्से से,
               मानो उनकी सारी संपत्ति ही खो गयी
सब गार्डस को बुला,खरी खोटी सुना,
               कड़े शब्दों में आदेश दिया, जाओ
कैसे भी हो, कहीं भी हो
              मेरी नेम प्लेट ढूँढ कर लाओ
एक गार्ड बोला मुझे संदेह है
            उस कूडा उठाने बाले पर,
                  कूड़ा उठा जो साथ ले जाता है
पास मैं ही स्थिति कूडेदान में कूड़ा दाल
                 रोज दोपहर घर चला जाता है
कर्नल गार्ड को ले जा पहुंचे कूड़े दान के पास,
                 देखा दो नवयुवक कुछ कर रहे थे
कूडेदान से ब्रेड और सब्जी के टुकड़े निकाल,
               प्लास्टिक की थैलियों में भर रहे थे
यह युवक थे राजीव झुग्गी झोपडी के
               यमुना किनारे से विस्थापित हो आये थे
घर के सभी सदस्य, खुद भी बेरोजगार थे
              कूडेदान में फिके भोजन को ही जीवन साध्य बनाये थे
आत्म ग्लानि से ह्रदय विदारित,
              कर्नल फूट फूट कर रोये
दुनिया के हालात न समझे
             रहे सदा ही जागृत सोये


श्रीप्रकाश शुक्ल
२२ अक्टूबर २००९
दिल्ली

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