Friday 25 June 2010

छः दिसम्बर १९९२ को अयोध्या में कुछ अराजक तत्वों ने वहाँ स्थिति बाबरी मस्जिद गिरा दी .तब से अब तक दिसंबर के प्रथम सप्ताह में उस दुखद घटना की याद दिलाने के लिए कुछ न कुछ उत्तेजक हर बर्ष लिखा जाता है
ऐसा ही इस बर्ष भी हुआ जो अच्छा नहीं लग रहा था सहसा कुछ विचार आये और मैंने उनको " याचना "नाम से एक छोटी सी रचना में पिरोहा .पढ़िए

याचना
मणि शब्द पिरोहो ऐसे, गाँठ न पड़ने पाए
रंग रंजित हों ऐसे, कालिख न लगने पाए
हर नज़्म बने कुछ ऐसी,पत्थर दिल पिघलाए
रस प्लावित हर गीत बने, प्रेमांकुर उपजाए


कहने को तो कुछ भी, कैसे भी कह सकते हैं
पर बात बिगडती हो जब, चुप भी रह सकते हैं
क्या पायेगा कोई जो बात पुरानी खोलोगे
कडवे ही रिश्ते होंगे जो नमक घाव पर छोड़ोगे


हमें जरूरत है हम सब, अपनी सोच बदल दें
मन बचन कर्म हों ऐसे,मानवता को बल दें
जो हुआ था पागलपन में,हम सब उसे भुलादें
आपस में सदभाव बढे, बस ऐसी ज्योति जला दें


श्रीप्रकाश
४ दिसम्बर २००९
दिल्ली





No comments:

Post a Comment