Friday 11 June 2010

दिसम्बर २००९ के माह में मनोज, रधिका, माहिका तीन सप्ताह की छुट्टी पर दिल्ली आये ., माहिका से मिले हमें बहुत दिन हो गए थे और ऐसा लगता था की वो शायद हम लोगों को न पहचान पाए लेकिन हुआ कुछ अप्रत्याशित सा . एक  रचना तुरंत अपने आप बन गई लीजिये यह रही वो :-













माहिका


माहिका आरही है
सुन नाना नानी,
उछल पड़े थे.
नानी व्यस्त हुयी कमरा सजाने में,
नाना जी किंकर्तव्य बिमूढ़, भ्रमित,
जुट गये ज़ीने की सीढियां सजाने में
दो बर्ष की गुडिया,
दरवाजे खुलते ही ,
कूद पड़ी थी
नाना की गोद में,
नानी की गोद, फिर नाना की गोद
बन गया उसका प्रिय आमोद
फिर कक्ष में आते ही
बोली थी "wow"
कभी गुडिया उठाती, कभी टेलीफोन,
कभी देख चित्र अपना, हो जाती मौन
खेलती रही, विस्तर पर,
फैलाया दाल भात, विस्तर पर,
जूते उतार फेंके, विस्तर पर,
पर्श खाली किया, विस्तर पर,
फिर पिता ने कहा अब चलें
बोली " no no no "
पिता ने खींच गोदी उठा लिया
मुख चूम कंधे से लगा लिया
" bye bye " कह रो रही थी
नानी के भी अश्रु वह रहे थे
नाना जी, जल्दी जाने को कह रहे थे


श्रीप्रकाश शुक्ल
३१ दिसंबर २००९
दिल्ली

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