Friday 11 June 2010

कविता लिखने की क्रिया अचानक ही शुरू हुयी. मेरे मित्र श्री महेश चन्द्र द्विवेदी ने अपनी एक रचना मुझे पढने के लिए भेजी मैंने उसपर अपनी प्रतिक्रिया एक कविता के रूप में ही दी उन्हें वो अच्छी लगी और लिख भेजा कि रचना स्तरीय है और मैं लिखता क्यों नहीं ? मुझे उनकी बात जम गयी . उन दिनों मैं लन्दन में था और रोज सवेरे regents park में टहलने जाता था .उस रोज मैंने गंभीरता पूर्वक पहली रचना की और उसे इ-कविता के मंच पर भेज दिया . बस फिर कवितायें लिखने का सिलसिला चालू होगया . तो लीजिये वो रचना :-

रोयल पार्क लन्दन

आज रोयल पार्क में एक अप्रत्याशित घटना,
मेरा मन विचलित कर गयी
भारतीय सोच मर्यादित या फिर संकुचित,
इस पर पुनः विचारार्थ प्रेरित कर गयी
सामने से आती एक हम उम्र महिला ने ,
मुख पर म्रदु हास ले,
गुड मोर्निंग बोल दिया
गुड मोर्निंग मैम,,हाउ आर यु कह,
हमने भी जैसे बराबर ही तोल दिया
लेकिन जो बात बढ़ी वह कुछ अजीव थी
बात तो छोटी थी पर सजीव थी
आई ऍम फाइन स्वीट हार्ट कह आगे चली गयी
मन मेरा भ्रमित हुआ बुद्धी छली गयी
क्या यह कोई साजिश थी या वशीकरण तंत्र था
या फिर खुशियाँ विखेरने का महा मूल मंत्र था
सोचा क्यों न इन जुमलों को यथा तथा प्रयोग करुँ
दुखियारे मन को कुछ मीठे पल दूं कुछ व्यथा हरुँ


घटना अकेले न पची मित्र को लिख दिया
मित्र ने ताबड़तोड़ उत्तर यों दिया
उससे कह दो अपना रास्ता ठीक से चले
किसी भोले भाले दिल को व्यर्थ मैं न छले
किसी को अकेले मैं पा मुस्कराना आपकी
तहजीब होगी,पर खालिस हिदुस्तानी दिल
तीन दिन तक फड़कता है
लिख तो दिया पर मन में कहाँ चैन था
महिला की झलक पाने को दिल बेचैन था
बोले कैसी होगी वोह जिसने कज़ब ढा दिया
एक ठूठ को लहलहाता कवी बना दिया
ऐसा ही हुआ था और हो रहा था
दिल उसे याद कर तब भी रो रहा था
पत्नी ने पूछा क्या काम कर रहे हो
लैपटॉप खुला है पर कुछ लिख नहीं रहे हो
बोली कल से में भी साथ चलूंगी
जैसी तुम् दलते हो में भी दाल गलूँगी



अगले दिन महिला फिर से प्रकट हुयी
साथ साथ चलते चलते जैसे ही निकट हुयी
हमने वह कह दिया जो मित्र ने कहा था
फिर वह बयां किया जो अब तक सहा था
 बोली स्वीट हार्ट अपने दिल को संभालिये
छोटी छोटी बातों का अर्थ न निकालिए
कहाँ से आये हो क्या देश है तुम्हारा
पत्नीव्रत निभाया विताया जीवन सारा
अब तो सारे देशों की आयो हवा अलग है
कोई किसी के साथ बिन कारण कोई अलग है 
धोखा धरी गवन यह है आधुनिक कलाएं
कैसे भी प्रयोग करें पर धन कमायें
सिद्धांत भारत के कुछ काम न आयेंगे
निराश शक्ति हीन हो सब बिखर जायेंगे
अच्छा यही की तुम अब भी मान जाओ
जिधर चले हवा पीठ उधर ही दिखाओ
इतना कह बोली वह अब हम चलेंगे
हमको है पूरा यकीं कल फिर मिलेंगे



पत्नी बोली रोज रोज क्या धृष्ट काम करते हो
जाते हो स्वास्थ लाभ पर बुद्धी भ्रष्ट करते हो
मैंने कहा प्रिये यह यथार्थ नहीं कल्पना है
पूरी रंगोली नहीं छोटी सी अल्पना है
पत्नी ने कुछ सोच कर लगा दिया प्रतिवंध
नारी की कल्पना कर कोई गीत न छंद
सामाजिक अपवादों का जग में पारावार
कोई भी लेकर करो सार्थक शुद्ध विचार
ज्ञान बढे बुध्ही बढे बढे विचारक शक्ति
यदि ठीक से कर सको अनुभूति अभिव्यक्त
बात समझ में आगई बुद्धी  हुयी सचेत
मन बेवश वश हो गया, प्रेम पिपाशा खेत




श्रीप्रकाश शुक्ल
११ अगस्त 2009
लन्दन

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