Wednesday 9 June 2010

मित्रो ,


भारतीय वायु सेना से अवकाश लेने के उपरांत एक समस्या यह हुयी, कि व्यस्त कैसे रहा जाए .योग , अध्ययन एवं अंतर्जाल पर समय विताने के बाद भी पर्याप्त समय बच रहता था . सोचा क्यों भूली बिखरी अनुभूतियों को फिर से सुधियों में लाकर एक जगह एकत्र किया जाय और जो रुचियाँ अभी तक पनप सकीं उन्हें क्यों फिरसे जगाया जाय


इसी प्रयास में सबसे पहिला कदम रहा हिंदी साहित्य का अध्ययन एवं अनुभूतियों को काव्य का रूप देना
तो प्रस्तुत है कुछ रचनाएं जो समय समय पर लिखी गयीं।


सैनिक की मनोव्यथा


 सोचा, गीत लिखूं इक मधुरिम,
                भरे सरसता, कोमल मन की
चातक की प्यास, आस बाला की,
                गुंजन हो, नूपुर ध्वनि की



घूंघट का पट, सूना पनघट,
                नटखट चितवन, प्यास पथिक की
कुंतल लट की झटक लटपटी,
                नाविक गीत, कूक कोयल की


 साँसों की सिसकन, सजल नयन,
                उलझन,तड़पन विछड़ी विरहिन की
यौवन की पीड़ा, आस मिलन की,
                आशाएं अनगिन दुल्हन की



पर ये मंजुल भाव रुपहले,
               अंकुरित हुये थे जो यौवन में
बिन पनपे ही, भेंट चढ गये,
              मातृभूमि को दिये बचन में


जीवन के व्यवधान अनेकों,
             घ्रणा,क्रोध,प्रतिशोध बो गए
कारुण्य, कल्पना, कृति, संवेदन,
            अनजाने ही व्यर्थ खोगये




आज तूलि, आतुर, अधीर,
            पर चित्र बनें धूमिल मन में
शब्द नहीं बन पाती संज्ञा,
            सोये पड़े भाव पलकन में




श्रीप्रकाश शुकल
०१ मई २०१०
 लन्दन











1 comment:

  1. priy shriprakash,
    tumhari lagbhag sabhi kavitaen tumhare blog men padhi.Tumne badi hi sundarta se apne vichron aur bhavnaon ko vyakt kiya hai.man ko chu janewali tumhari baton se to ab prichay ho paya hai. thhaka lganewale shriprakash itne samvedanshil hain yh ab jana.In kavitaon ki to kitab chapni chahie.yahoo par abhi bhi devnagri men likhna nhin aaya hai.usa men khan ho? Baby

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